देश को कई युवा पत्रकार के साथ अच्छे इंसान देने वाले पुष्पेंद्र पाल सिंह किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। शिक्षा व मीडिया जगत में पीपी सिंह के नाम से मशहूर श्री सिंह वर्त्तमान में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष हैं। परिवर्तन में रूचि रखने वाले श्री सिंह का मानना है कि बदलाव समय की मांग होती है। श्री सिंह मानते हैं कि नए कौशल, नए ट्रेंड्स, प्रस्तुतीकरण का स्टाइल और बाज़ार की ओर देखने का युवा पत्रकारों का नजरिया पुराने पत्रकारों से अलग होने के कारण युवा पत्रकारों ने पुराने लोगों को काफी पीछे छोड़ दिया है। मीडिया से ऐसी जुड़ी कई बातों पर सिद्वार्थ भारद्वाज ने उनसे विशेष चर्चा की। प्रस्तुत है चर्चा के प्रमुख अंश :
अक्सर यह देखा जाता है कि पत्रकारिता संस्थानों में पढ़ाई करने के दौरान छात्र काफी उत्साही होते हैं। परन्तु जब वो किसी मीडिया संस्थान में आते हैं तो उन्हें निराशा हाथ लगती है। कौन जिम्मेदार है इसके लिए ?
इसमें दोनों पक्ष हैं। सारे संस्थान भी अच्छे नही हैं। सभी जगह सभी संसाधन उपलब्ध नहीं हैं। बहुत सारे संस्थान बहुत ही पुराने ढर्रे पर अभी भी चल रहे हैं। लेकिन महत्वपूर्ण है की ख़ुद का विश्लेषण ईमानदारी से करें। तुलना करने का प्रयास न करें। यदि करें तो अन्तर जाने। मीडिया संस्थानों में कौशल मायने रखता है इसलिए इसमे बहुत सारी बाते है जो किसी छात्र को एक सफल पत्रकार बनाता है। आवश्यक कौशल से लैस आदमी को कहीं कोई दिक्कत नही होती। समाचार की अच्छी समझ, भाषा का ज्ञान, सामान्य अध्ययन पर पकड़, तकनीकी रुप से सक्षम और बेहतर प्रस्तुतीकरण के गुण- जिनके पास यह सब है उन्हें कोई दिक्कत नही है।
पत्रकारिता में जेनेरेशन गैप के बारे में बहुत कुछ बोला जाता है। इस बारे में आप क्या सोचते हैं ?
पत्रकारिता में जेनेरेशन गैप के बारे में आमतौर पर केवल वैचारिक भिन्नता की बात की जाती है। पर इसके साथ साथ और भी बिन्दु हैं जैसे नए कौशल (खास तौर पर कंप्यूटर पर पकड़), नए ट्रेंड्स, प्रस्तुतीकरण का स्टाइल और बाज़ार की ओर देखने का दोनों का अलग अलग नजरिया। इन सब कारकों ने पुराने लोगों को काफी पीछे छोड़ दिया है यही वास्तविकता है। एक महत्वपूर्ण बात जो इसी से जुड़ी है वो यह की इन सभी कारको ने अनुभव की महत्ता को भी दरकिनार कर दिया है।
युवाओं की अति महत्वाकांक्षा को आप किस रूप में देखते हैं ?
ऐसा देखा जाता है की आज के युवा पत्रकार बहुत जल्दी जल्दी अपने संगठनो को बदलते हैं। शुरूआती स्तर पर भी। इसके कई कारण हो सकते हैं पर क्या यह भी महत्वाकांक्षा की पराकाष्ठा की श्रेणी में नही आता ?
हिन्दी पत्रकारिता में आजकल बूम जैसी स्थिति दिख रही है। क्या भविष्य देखते हैं आने वाले समय की पत्रकारिता की ?
आप तो लगभग दस वर्षों से पत्रकारिता से जुड़े हुए हैं। कैसे देखते हैं इस सफर को ?
समय के साथ बदलना कितना मुश्किल और कितना आसान रहा ?
हाल में दो हिन्दी बिजनेस अख़बार बाज़ार में आए हैं। इस पर आप क्या कहेंगे ?
हाल में सरकार द्वारा पत्रकारों को नागरिक सम्मान से नवाजे जाने पर यह बात सामने आई की कि ऐसा नही होना चाहिए। क्या मानना है आपका ?
Published on
bolhalla.blogspot.com
March 03, 2008
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