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Monday, 14 January 2008

"बापू के सपने"

बापू के सपने

हमने पाई आज़ादी
साठ (६०) बरस पहले,
तब बापू ने संजोये थे
कई सपने.

बरसों हमने कि मेहनत
और साकार किये सपने.

पर ज़ब दिल से पूछता हूँ…
कभी अकेले में,

तो आती है एक धीमी आवाज़,
हमारे नेताओं ने
और हमने
छोड दिए सोचना
न केवल
बापू के सपने
बल्कि सोचना
अपने सपने के भारत को भी


पूछता हूँ दिल से
क्या सच हो पाएंगे
कभी बापू के सपने
यदि हाँ भी
तो कब तक
कब तक ?


WRITTEN ON INDEPENDENCE DAY, 2007

दिल्ली

दिल्ली

दिल्ली है देश की राजधानी
दिल्ली है देश का दिल…..
ऐसा भी कहते हैं

क्योंकि बसी है यह
दिल्ली ऐसी
जैसा की शरीर में होता है

पर शायद
इसके अलावा भी कुछ है दिल्ली

मेरी नज़र में तो कुछ भी नही है दिल्ली

इस कुछ नही का मतलब है….
यह शहर नही कुछ और है

दरअसल, मेरी नज़र में दिल्ली है एक कालोनी
जी हाँ,
कई बड़ी कॉलोनियों से बना
एक मेगा कालोनी

क्योंकि ज़ब
दिल्ली की सड़कों से गुजरता हूँ

तब देखता हूँ बस
सड़क के चारों तरफ
छोटी-बड़ी, लम्बे-छोटे
केवल और केवल दीवारें

दीवारों
के ऊपर
लोहे की मज़बूत फेंसिंग
एक खत्म हुआ तो
दूसरी बाउंड्री शुरू हो जाती है

चारों तरफ से……….
बंद महसूस करता हूँ
इस मेगा कालोनी में

जब भी कभी …
उन्मुक्त छलांग लगाना चाहता हूँ
तो………
खुद को zakdaa महसूस करता हूँ
इस दिल्ली में.

दिलवालों कि है दिल्ली ?

दिलवालों कि है दिल्ली ?

कैसे कहते हैं..
कि
दिलवालों कि है दिल्ली

मुझे तो ऐसा लगता है
कि
अब दिल वालों (wall for Deewar) में ही कैद हो गए हैं
दिल्ली वालों कि

ठीक उसी तरह
जैसे
अनारकली कैद हो गयी थी ..
तब के बेरहम दीवारों में
जो अब वाल (दीवार) के नाम से भी जाने जाते हैं

कैसे कहते हैं
कि
दिलवालों कि है दिल्ली
यहाँ तो कोई सीधी मुह बात भी नही करता..
दिल से बात करने कि बात तो
दिल्ली दूर

दिलवालों को तो लुट लिया है
दिल्ली वालों ने

अब तो रईसों कि है दिल्ली
नेताओं कि है दिल्ली
ठेकेदारों कि है दिल्ली


नही तो पुलिस और अतान्क्बदियों कि है दिल्ली
खूबसूरत हसीनाओ कि है दिल्ली


पैसे वालों कि है दिल्ली
पैसे वालों कि है दिल्ली.