भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच चल रहे वर्तमान टेस्ट क्रिकेट श्रृंखला से अंपायर स्टीव बकनर का हटाया जाना क्रिकेट की दुनिया का एक बहुत ही अहम और दूरगामी फैसला है। दरअसल, अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) ने यह फैसला दबाव में लिया है। परिषद पर भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) की तरफ से काफी दबाव था और इस फैसले के अलावा शायद परिषद के पास और कोई चारा भी नहीं था, जिससे वह क्रिकेट की अपनी सर्वोच्च संस्था होने की साख बनाए रख पाती।
भारत में क्रिकेट की सर्वोच्च संस्था बीसीसीआई ने यह मन बना लिया था कि यदि आईसीसी ने भारत के आरोपी खिलाड़ी हरभजन सिंह को यदि अगले टेस्ट मैच में खेलने से रोक दिया तो वह अपनी टीम को बीच दौरे से ही स्वदेश बुला लेगी। बीसीसीआई के इस अकडू रवैये ने आईसीसी को झुका दिया।
वास्तव में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के प्रभाव पीछे कई कारक हैं। इन सभी कारकों में सबसे प्रमुख है पूंजी का प्रभाव। आज की तारीख में बीसीसीआई के पास क्रिकेट की दुनिया की पूंजी का लगभग 70 फीसदी हिस्सा है। जाहिर है यदि इस श्रृंखला से भारतीय टीम वापस भी आ जाती तो बोर्ड को अपनी आय के बारे में कोई खास फिक्र नहीं होती ।
दूसरी तरफ, आईसीसी यह नही चहती कि भारतीय टीम दौरे के बीच से वापस चली जाए। इसके तो दूरगामी परिणाम हो सकते थे-एक तो यह कि भारतीय टीम भविष्य में भी आस्ट्रेलियाई टीम से खेलने से मना कर दे और दूसरी यह कि बीसीसीआई, आईसीसी से ही बाहर हो जाये।
इन दोनों ही परिस्थितियों के घटने की संभावना को एक सिरे से खरिज नहीं किया जा सकता था, परन्तु इन दोनों ही परिस्थितियों में अंतत: पलड़ा भारत का ही भारी होता। अकेले भारतीय बोर्ड का क्रिकेट के बाजार के सत्तर फीसदी हिस्से पर कब्जा है और अभी तो इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) की बात भी चल रही है। जाहिर है आईसीसी ने परिस्थिति को भांपकर इस विवाद को टालने का सही फैसला किया।
एक बात जो यहां काफी महत्वपूर्ण है, वह है देश के गौरव का सवाल। पूरी भारतीय मीडिया ने इस पूरे प्रकरण को इतना तूल दिया कि भारतीय बोर्ड इस मुद्दे को दरकिनार ही नहीं कर सकता था। मीडिया ने इसे राष्ट्र-गौरव से जोड़कर दिखाया। लगभग सभी चैनलों और आखबरों ने इसे बड़ी ही प्रमुखता के साथ स्थान दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि समूचे देश में इस बात पर एक बहस छिड़ गई। अंतत: बीसीसीआई ने भी विवाद के मुद्दे पर कड़ा रूख अख्तियार करते हुए अपनी बात को जोरदार ढ़ग से आईसीसी के सामने रखने की रणनीति बनाई।
मीडिया ने पूरी सक्रियता से इस पूरे प्रकरण को सामने रखा और देशभर में एक आम धारणा बनाने में कायम रही कि भारत को अम्पायरों ने हराया बल्कि एक कदम आगे बढ़ते हुए यहां तक कि बकनर बेईमान हैं।
एक और पक्ष जिसे इस प्रकरण के साथ ही जोर कर देखा जाना चाहिए वह है गोरे और काले प्रजाति का मुद्दा। दुनिया भर में क्रिकेट खेलने और देखने वालों का एक बहुत बड़ी आबादी भारतीय उपमहाद्वीप के चार देश-भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका में बसती है। भारत इस पूरे क्षेत्र का सबसे बड़ा और शक्ितशाली राष्ट्र है, साथ ही इसकी किक्रेट बोर्ड भी। सो कहीं-न-कहीं, बोर्ड पर अपनी शक्तियों का प्रयोग अपनी बात को जोरदार ढंग से कहने के लिए करे की जिम्मेदारी भी है, जिसे इस बार बीसीसीआई ने बखूबी किया है।
बहरहाल, अंत में यह कहा जा सकता है कि भारतीय किक्रेट बोर्ड केवल ''कागजी शेर' नहीं बल्कि वाकई दहाड़ने वाला शेर है और इस दहाड़ के पीछे है पैसों की खनक।
Published in
दैनिक नयी दुनिया
भोपाल
January 15, 2008
Tuesday, 15 January 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment